Types of Programming: Computer एक Digital Machine है और हर Digital Device की तरह ही Computer तभी हमारे लिए कोई उपयोगी काम कर सकता है जबकि उसे उस काम को करने के लिए पहले से Program किया गया हो। यानी Computer एक Reprogrammable Device है जिसे अलग-अलग प्रकार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बार-बार Reprogram किया जा सकता है।
Computer द्वारा किसी Specific Type की Requirement को पूरा करवाने के लिए हमें हमेंशा किसी न किसी Programming Language को उपयोग में लेना होता है। क्योंकि कम्प्यूटर एक निर्जीव मशीन है जो हिन्दी, English जैसी हमारी किसी भाषा को नहीं समझता बल्कि वह केवल उस भाषा को समझता है, जिसे हम मशीनी भाषा के नाम से जानते हैं और परेशानी की बात ये है कि हम इन्सान मशीनी भाषा को आसानी से नहीं समझ सकते।
इस स्थिति में Programming Language व भाषा होती है, जिसे उपयोग में लेते हुए हम Computer को दिए जाने वाले Instructions सरल English भाषा के कोड के रूप में लिखते हैं, और इन कोडस् को कम्पाईल करने पर ये कोडस् उस मशीनी भाषा में बदल जाते हैं, जिन्हें हमारा Computer System आसानी से समझ सकता है और हमें वो Output Provide करता है, जिनके लिए हमने हमारे Computer को Program किया होता है।
Digital Devices को Pr0gram करने के लिए भी हम सामान्सत: दो तरह की Programming कर सकते हैं। पहले प्रकार की Programming वह Programming होती है जो किसी Computer को काम करने लायक अवस्था में लाने के लिए की जाती है। इस प्रकार की Programming को भी दो भागों में बांटा जा सकता है:
Hardware Programming
इस Programming के अन्तर्गत Computer के Hardware यानी Computer के Motherboard पर लगाए गए विभिन्न प्रकार के Chips व Computer से जुडे हुए अन्य विभिन्न प्रकार के Peripherals जैसे कि Keyboard, Mouse, Speaker, Monitor, Hard Disk, Floppy Disk, CD Drive आदि को Check करने व Control करने के लिए हर Mother Board पर एक BIOS Chip लगाई जाती है। इस BIOS Chip मुख्य काम Computer को ON करते ही विभिन्न प्रकार के Devices को Check करना होता है। यदि Computer के साथ जुडी हुई कोई भी Device ढंग से काम नहीं कर रही होती है, तो BIOS Chip में Embed किया गया Program ही User को विभिन्न प्रकार के Error Messages Show करता है।
BIOS Chip के अन्दर ही प्रोग्राम को लिखने का काम BIOS बनाने वाली Company करती है। इसे Hard Core Programming या Firmware Programming भी कहा जाता है। Hardware Programming में Chip को बनाते समय ही उसमें Programming कर दी जाती है। इसलिए यदि किसी भी Computer के Motherboard पर लगी BIOS Chip खराब हो जाए, तो Computer किसी भी हालत में काम करने लायक अवस्था में नहीं आ सकता यानी Computer कभी भी Boot नहीं हो सकता।
इसके अलावा जो दूसरे प्रकार की Hardware Programming होती है, उसमें किसी Blank Micro-Controller Chip को जरूरत के अनुसार Program किया जाता है। यानी जरूरत के अनुसार इस प्रकार के Chip में किसी Firmware Writer Machine द्वारा Program को Permanently Write या Embed कर दिया जाता है। यानी जब हम किसी Mobile को Flashing Machine द्वारा Flash करके उसमें फिर से Company के Default Software को Upload कर रहे होते हैं, तब हम वास्तव में Mobile के Micro-Controller को Reprogram ही कर रहे होते हैं।
इसी तरह से वर्तमान समय में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के Electronic Devices जैसे कि CD Player, DVD Player, D2H, Digital Watch, Digital Camera आदि तथा विभिन्न प्रकार के Lightning Gadgets आदि को Normal तरीके से काम करवाने के लिए भी विभिन्न प्रकार के Micro-Controllers को पहले ही Program कर दिया जाता है। जबकि up8051 सामान्य रूप से Embedded Programming के लिए उपयोग में लिया जाने वाला सबसे Common Micro-Controller Chip है।
यानी पहले प्रकार की Hardware Programming में CHIP को बनाते समय ही उसमें जरूरी Program Embed कर दिया जाता है, जबकि दूसरे प्रकार की Hardware Programming में Blank CHIP बनाया जाता है और इन Blank Chips में जरूरत के अनुसार Program बनाकर Upload कर दिया जाता है।
Software Programming
Hardware Programming की तरह ही हम Software Programming को भी दो भागों में बांट सकते हैं, जिसके अन्तर्गत पहले प्रकार के Programs, किसी Computer या Digital Device को काम करने लायक अवस्था में लाते हैंा इस प्रकार के Software को Operating System Software कहा जाता है। यदि हम Computer के आधार पर समझें तो BIOS Chip का काम पूरा होने के बाद Computer का पूरा Control Operating System Software के पास आ जाता है।
Computer के BIOS से Control Return होने के बाद सबसे पहले Memory में Load होने वाला Software Operating System Software ही होता है। चूंकि यही Software हमारे पूरे Computer System की Working को Startup से Shutdown तक Control करता है, इसलिए इसे Master Software भी कहते हैं।
वर्तमान में विभिन्न प्रकार के Operating System Software बन चुके हैं जैसे Windows, OS/2, WRAP, Unix, Linux, Android, Symbion, iOS आदि। इन सभी Software का मुख्य काम Computer या Device को Boot करके User के काम करने योग्य अवस्था में लाना ही होता है।
जबकि दूसरे प्रकार की Software Programming वह Programming होती है, जिसके आधार पर Computer हमारी किसी जरूरत को पूरा करता है और हमें हमारी इच्छानुसार परिणाम प्रदान करता है। इस प्रकार के Software को Application Software कहा जाता है।
हम किसी भी Operating System के लिए किसी भी भाषा में जब कोई Program लिखते हैं, तो वास्तव में हम Application Software ही लिख रहे होते हैं। क्योंकि Application Software का मुख्य काम किसी विशेष समस्या का समाधान प्रदान करना होता है। MS-Office, Corel-Draw, PageMaker, Photoshop आदि Application Software के ही उदाहरण हैं, जो हमें किसी विशेष प्रकार की समस्या का समाधान प्रदान करते हैं। जैसे यदि हमें Photo Editing से सम्बंधित कोई काम करना हो, तो हम Photoshop जैसे किसी Application Software को उपयोग में लेते हैं। जबकि Document Typing करने के लिए हमें MS-Word जैसे किसी Text Editor को Use करना होता है।
Operating System Software व Application Software में मुख्य अन्तर यही होता है कि Operating System Software स्वयं अपने स्तर पर कोई काम नहीं करता बल्कि किसी Application Software को Normal तरीके से अपना काम पूरा करने के लिए Environment Provide करता है, जबकि Application Software किसी Specific Type की Requirement को पूरा करने का काम करता है।
अन्य शब्दों में कहें तो बिना Operating System Software के कोई भी Application Software Run नहीं हो सकता क्योंकि किसी Application Software को Run होने के लिए जितनी भी व्यवस्थाऐं करनी होती हैं, उन्हें Operating System Software ही पूरी करता है।
जबकि यदि Operating System न हो, तो ऐसे Device पर कोई Application Run नहीं हो सकता। यानी Application Software हमेंशा Operating System Software के Top पर Run होता है। इसलिए यदि Operating System Software न हो, तो Application Software Run ही नहीं हो सकता।
केवल किसी Programming Language के Codes/Syntaxes को सीख लेने मात्र से ही आप अच्छे Programmer नहीं बन सकते, बल्कि आपको ये भी अच्छी तरह से समझना पडता है कि आखिर Programming होती क्या है और किस प्रकार की जरूरतों को पूरा करने के लिए किस प्रकार के और कैसे Programs बनाए जाते हैं। यदि आपको इस Article के माध्यम से Programming से सम्बंधित कुछ Basic बातें समझ में आ रही हैं, तो आप निश्चित रूप से हमारी पुस्तक C Programming Language in Hindi के माध्यम से न केवल C Programming के Basic Code/Syntax सीख सकते हैं बल्कि बडी ही आसानी से ये भी समझ सकते हैं कि आखिर किस प्रकार की जरूरत को पूरा करने के लिए किस प्रकार के Program बनाए जाते हैं और कैसे बनाए जाते हैं। (Types of Programming)
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